Wednesday 21 October 2015

जनता परेशान है....

जनता परेशान है,हाल बेहाल है
हर ओर हहाकार है ,लूट और भ्रष्टाचार है
इंसानीयत के नाम से,लोग अनजान है.
न्याय की कूर्सियो पे ,बैठा शैतान है
साधुओ के वेश में ,ठगों का सरदार है.
जनता परेशान है, हाल बेहाल है.
           बढ़ रहा दलहन और तिलहन का दामहै,
           नेताओ को सिर्फ “बीफ” से प्यार है .
           जनता परेशान है ,हाल बेहाल है
           किसी को मुस्लिम से सरोकार है
           कोई हिन्दुत्व का ठिकेदार है
           इंसानीयत के नाम पे सभी कंगाल है
           जनता परेशान ,हाल बेहाल है....

धर्म के नाम पे बट रहा समाज है
लड़ रहा ,कट रहा सभी इंसान है
क्या फर्क उनको जिनके सर पे ताज है ??
जनता परेशान है,हाल बेहाल है.....

बिगड़ रहा सदभाव है,
कालीखो से खिलवाड़ है
साहित्य का अपमान है,
रो रहा साहित्यकार है,लौटा रहा पुरस्कारहै
जनता परेशान है,हाल बेहाल है......

देश के हर कोने में, “दादरी” सा हाल है
कोई शिवाजी का लाल है,
तो कोई अकबर महान है
भारतीय होने का किसी को ना ख्याल है
जनता परेशान है,हाल बेहाल है.....

विकास के नाम पे
ठग रहा गुनेहगार है
समानता के नाम पे ,आरक्षण की भरमार है
छोटे तो छोटे , बड़ो को भी दरकार है
जनता परेशान है,हाल बेहाल है.....

डिजिटल इंडिया की चाह है,
गांवो में फैला अंधकार है
वोट के चाह में लड़ रहा सरकार है,
क्या p.m क्या c.m ??
सबको कुर्सी से ही प्यार है
जनता परेशान है, हाल बेहाल है....

महिला सुरक्षा तो बस एक ख्याल है
लुट रही उनकी आबरू अब तो सरेआम है
आरोप प्रत्यारोप में व्यस्त  सरकार है
जनता परेशान है, हाल बेहाल है....

शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा ही बुरा हाल है
विद्यालय तो है पर शिक्षकों का आभाव है
बेरोजगारी की मार सह रहा नौजवान है
रोजगार के नाम पे वादों का भंडार है
जनता परेशान है हाल बेहाल है....

भारतीय संविधान का भी यही हाल है
एक मुकदमा चलता सालो साल है
मुजरिम फरार है,जेल में हड़ताल है
प्रशासन के नाम पे, फैला जंगलराज है
जनता परेशान है,हाल बेहाल है....

आंदोलन की आड़ में,
राजनीती का आगाज है
पहले भूख हड़तालहै,लाठियो का मार है
फिर जनता को लूटने का पूरा अधिकार है
जनता परेशान है हाल बेहाल है.......

सीमा पे खड़ा चाइना और पाकिस्तान है
घुसपैठ करने को हर वक्त तैयार है
आए दिन मर रहा हमारा एक जवान है
आन्तरिक कलेश से ,जूझ रहा हिन्दुस्तान है
जनता परेशान है,हाल बेहाल है.................



ध्नयवाद !

विशाल

Friday 16 October 2015

कब बदलेगा “बिहार”



काफी दिनों के बाद मै अपने गावं जा रहा था. नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से संध्या पांच बजकर तीस मिनट (5.30pm) पे मेरी ट्रेन थी.मेरा गावं ,मेरे पिता का जन्म स्थल ,मेरा पैतृक निवास “समस्तीपुर बिहार” .गावं जाने की खुशी मुझे रोमांचित कर रही थी. हो भी क्यों ना बचपन की यादें , दादा जी का आम का बगीचा , दादी की हाथो का खाना , खेत-खलियान सब कुछ मुझे अपने पास बुला रहा था.यही सब सोचते सोचते  कब मैं नई दिल्ली स्टेशन आ गया पता ही नहीं चला.

मैं काफी समय बाद ट्रेन में सफर कर रहा था. मै पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग करने वाला था.एक जिम्मेदार नागरिक होने का फर्ज निभाने जा रहा था. मेरी टिकट स्लीपर कोच(sleeper coach) में थी, तत्काल (current) में agent द्वारा ticket book कराने की वजह से मुझे confirm ticket  मिला था.

अभी मैं station पंहुचा ही था की platform पे खड़ी भीड़ देख मेरे होश ठिकाने लग गए.जिधर देखो उधर सिर्फ आदमी ही आदमी,मानो railway station पे नहीं कुंभ के मेले में आ गए हो.

भारतीय रेल के बारे में सुना था की time से चलना उनकी आदत नहीं होती.आज देख भी लिया  ....” यात्रीगण  कृप्या ध्यान ! गाड़ी संख्या 0102 (काल्पनिक संख्या) जो जयपुर से चलकर नई दिल्ली,कानपूर , हाजीपुर, मुज्ज़फरपुर ,समस्तीपुर होते हुए बरौनी तक जाएगी, गाड़ी  अपने निर्धारित समय से दो घंटे देरी से चल रही है , गाड़ी 19 बजकर तीस मिनट ( 7.30pm) पे plateform संख्या 16 पे आएगी.यात्रियो को हुई  असुविधा के लिय हमे खेद हैं.” धन्यवाद !
अब भईया दो घंटे भीड़ में खड़ा रहना काफी चुनौतीपूर्ण कार्य था. यही सोचते हुए मैं इधर उधर देखने लगा ,तभी अचानक मेरी नजर platform पे खड़ी एक टोली पे(कुछ लोगो के समूह) पड़ीं.उनको देख कर लगा जैसे वो घर shift करने जा रहे हो.बड़ी सी पेटी , बक्सा, बाल्टी(buket), music system ,दो-चार बोड़ी (bag) शायद कपड़े और बर्तन के और भी ना जाने कितने सामान ऐसे थे जो कहीं भी आसानी से और शायद एक ही मूल्य पे उपलब्ध हो.
मुझे पहली बार लगा क्यों लोग बिहारियों को देख कर एक पल में जान जाते है की ये बिहारी हैं, क्या सच में मेरा बिहार इतना दयनीय हैं !!
जब मुझ से नहीं रहा गया तो मैंने उनमें से एक से पूछा , “ भईया आपलोग इतना सामान लेकर क्यों जा रहे हो ?
उसने कहा “क्या करे साहब फसल का समय हो गया हैं ,खेती –बारी  भी तो देखनी हैं ,अभी खेती का सीजन (season) है इसलिए हमलोग जा रहे हैं ,और यंहा कोई परमानेंट (permanent) ठिकाना तो है नहीं की सबकुछ छोड़ के जाए .”
उसने जिस दर्द से अपनी बात कही उसे सुन मेरी आँखों में पानी आ गया.वो बिहार से था .बिहार वही राज्य है जो देश को सबसे ज्यादा I.I.T engineer ,I .A.S OFFICER हर साल देता है , ये वही राज्य है जिसने देश को पहला राष्ट्रपति दिया   ,ये महान सम्राट अशोक की जन्म भूमि है. और न जाने कितने ऐसे विभूति है जिनका उलेख करू तो शायद शब्द कम पड़ जाए.

हर राज्य की तरक्की में बिहारियों का योगदान हैं .
रिक्शा चलाता कौन ??  बिहारी
ऑटो चलाता कौन ??  बिहारी
इमारतो के निर्माण में मजदुर कौन ?? बिहारी
छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा काम करता कौन ?? बिहारी
जब बिहारियों में इतनी काबिलियत हैं तो फिर बिहार में ही बेरोजगारी क्यों हैं ?जब बिहारी देश के हर कोने में जा कर काम कर सकता है तो फिर अपने घर में वो कोना क्यों नही है जंहा वो काम कर सके रोजगार पा सके.
आए दिन ताने ,अपमान और तिरस्कार झेलना उनकी किस्मत का हिस्सा बनता जा रहा है और उनकी जख्मो पे मलहम की जगह नमक छिडकने का काम कोई और नही उनके द्वारा चुना उनका अपना प्रतिनिधि ही करता है.
अभी चुनाव का माहौल हैं जिसे देखो बिहारी होने का , उनका हितेषी होने का दावा करता है. चुनाव (ELECTION) खत्म हितेषी गायब, वादे खत्म.
मेरा उन नेताओ से अनुरोध है जो हमारी भावनाओं से खेलते है,जिनकी चिकनी चुपड़ी बातों में आकर हम उन्हे अपना उतराधिकारी बना लेते है और अपने आप को ठगा महसूस करते है. हम एक बार फिर आप को VOTE देने को तैयार बैठे है .हम इस बार आपको VOTE सिर्फ “विकास” (DEVLOPMENT) के नाम पर देंगे, बेरोजगारी(UNEMPLOYMENT) दूर करने के नाम पर देंगे. कृपया हमे अपने घर में रोजगार दे , हम बाहर नहीं जाना चाहते ,हमे धर्म जाती –वाद में ना बांधे. 

आशा करता हु अबकी बार एक "बदला हुआ बिहार"..


बिहार विकास (DEVLOPMENT OF BIHAR) का सपना होगा पूर्ण ,रोजगार की तलाश में नही जाना होगा घर से दूर.....
     " हमे नही लड़ाओ जाती के नाम पे,
      ना फसाओ झूठे वादों के जाल में
      बहुत दयनीय हालात है, हर कोई बदहाल है.
      विकास लाओ, बहार लाओ
      बिहार की नई पहचान लाओ....."
                                                                

                                                                    धन्यवाद !

विशाल


Tuesday 13 October 2015

Vicharo Ka Deep

 
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Hindi Social Story – Vicharo Ka Deep
Photo credit: allyeargarden from morguefile.com
दीवाली का त्योहार काफी नजदीक  था. मैं अपने पुत्र विशेष के साथ बैठा था. अचानक मेरे मन मे विचार आया क्यों न इस दीवाली कुछ नया किया जाये. विशेष मेरी तरफ देख के पूछा “क्या पापा”??
फिर मैंने कहाँ क्यों ना इस दीवाली हम अनाथ बच्चो के लिए कुछ करे,क्यों न किसी अनाथ आश्रम जाये ,वंहा कुछ चंदा दे आए जिससे उन बच्चो की भी दीवाली मन जाए. मेरे बेटे को मेरा विचार अच्छा लगा और अगले दिन हमने तय किया की हम अनाथ आश्रम जाएंगे.
अगले दिन मैं और विशेष अनाथ बच्चों के एक आश्रम गए. वंहा एक कर्मचारी मिला जो काफी मिलनसार लगा . हमने उससे आश्रम के बारे में बात की. उसने हमे बताया की इसके लिए हमे उनके एक सामाजिक कार्यकर्ता से बात करनी होगी, जिसके पास चंदा आदि लेने का प्रभार है. हम वंहा बैठकर प्रतीक्षा कर ही रहे थे की तभी एक महिला दनदनाती हूई अन्दर आई और ऐसे स्वर मे हमसे बोली जैसे कोई जेलर किसी दुर्दांत अपराधी से बात कर रही हो, ऐसा लगा मानो कब्र में लेटा मुर्दा भी शायद हिल गया होगा, “ओह तो आप है, जो चंदा देना चाहते है ? देखिए आप मुझे 500 किलो चावल दे दें…अभी फ़िलहाल मुझे बस चावल ही चाहिए और कुछ नही.अगर आप इतना नही दे सकते तो आप पांच किलो भी दे सकते है ,लेकिन मुझे सिर्फ चावल ही चाहिए, बस में जा रही हु.”
इतना कहकर वो चली गई.कोई शिष्टाचार नही, ख़ुशी का कोई एहसास नही,कोई मुस्कुराहट नही…..वह आई और शब्दों के तीक्ष्ण बाण छोड़ के चलती बनी. मैंने अपने आप से कहा “यह है चंदा लेने की प्रभारी ! हे भगवान इस आश्रम के बालको की रक्षा करना “.
मैं और विशेष स्तब्ध होकर कुछ देर तक तो कुछ बोल ही नहीं पाए….हम इस अपमान और अनादर के कडवे अनुभव से उबरने की कोशिश में लगे रहे. कुछ देर पश्चात मैंने विशेष से कहा “ हम 500 किलो चावल दे ही देते है .हमे तो बच्चो के लिए करना है, ना की इस महिला के लिए. तो फिर बच्चो की भूख और अपनी सदभावना के बीच हम इस महिला के दुर्व्यवहार को आड़े क्यों आने दें ??”
मैंने अपने पुत्र को समझाया “ बेटा हम यंहा एक सदभाव से आए है. हमारा व्यव्हार किसी बाहरी व्यक्ति के बहकावे से क्यों भड़कने लगा, संसार का कोई भी व्यक्ति हमारे भीतर के भलेपन को कैसे रौंद सकता है. हम साधु और  बिच्छू की वो कथा क्यों भूल जाते है ,जिसमे बिच्छू के बार-बार डंक मारने के पश्चात् भी साधु ने अपनी अच्छाई का , अपनी इंसानीयत का, अपने मानव धर्म का दामन नही छोड़ा.तो फिर हम जरा सी बात पे अपने आप को ,अपने व्यव्हार को अपने अन्दर के भोलेपन को क्यों बदल देते है.
संसार कैसा व्यव्हार करता है,यह देखना हमारा काम नही है.सबसे गर्व की बात होती है अपनी नजर में ऊंचा उठना.आप सदैव अपने चरित्र को जिए ,चाहे आप कंही भी हो,किसी भी कसौटी पर हो और कुछ भी कर रहे हो. दूसरो की सीमा के कारण हमे खुद को सीमित नहीं करना चाहिए.वह गलत है इस बात की आड़ लेकर की गई आपकी गलती क्षमा योग्य नही होती.गलती के बदले गलती करना कोई सही तरीका नही है.”
विशेष मेरी बात को ध्यान से सुना . आखरी मैं विशेष मुझ से कहता है “ पापा इसका मतलब ये हुआ की हमे अपनी अच्छाई, अपनी सोच,अपना व्यक्तित्व का हमेसा ख्याल रखना चाहिए.”
विशेष की बात सुन मुझे अतिप्रश्नता हुई. और मैंने उससे कहा “ हाँ बेटे जीवन की हर मोड़ पे ,हर मौके पे हम लोगो का अनुसरण ही करे ऐसा आवश्यक नही,बल्कि हम कुछ ऐसा करे ताकि लोग हमारा अनुसरण करे……
आशा करता हु की विशेष की तरह आपको भी हमारी बात अच्छी लगी हो.
“किसी के बहकावे में ना आना ,
जब भी ,जंहा भी जाना खुशियाँ ही लुटाना.
दीवाली के दीप संग
विचारों की रौशनी फैलाना “
धन्यवाद !
विशाल
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